कोरोना: बेगूसराय में इस वायरस को लेकर क्या माहौल ख़राब हो रहा है?

  • 21 अप्रैल 2020
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यूं तो बिहार के बेगूसराय की चर्चा वहां की राजनीति को लेकर होती है. कारण है कि यह ज़िला बिहार में वामपंथी राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है. मगर इन दिनों बेगूसराय की चर्चा कोरोना वायरस के कारण है और उससे भी अधिक वहां हो रहे हिंदू-मुसलमान झगड़े के कारण है.

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक बेगूसराय में कोरोना वायरस के नौ पॉज़िटिव मामले मिल चुके हैं. इसे हॉटस्पॉट बना दिया गया है.

मगर इससे भी गंभीर बात यह है कि पिछले हफ़्ते भर के अंदर ज़िले के अलग-अलग थानों में हिन्दू-मुसलमान विवाद से जुड़ी चार एफ़आईआर दर्ज की जा चुकी हैं.

बेगूसराय पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक़ अलग-अलग मामलों में तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है, जिनका ताल्लुक़ अतिवादी हिन्दू संगठनों से है.

राशन पानी रोका, मारपीट की

वैसे तो कोरोना वायरस का हॉटस्पॉट पूरा बेगूसराय ज़िला है, लेकिन हिन्दू-मुसलमान विवाद का हॉटस्पॉट भगवानपुर प्रखंड बन गया है.

भगवानपुर थाने में दर्ज एक शिकायत का विषय है, "मुसलमान ‌समझकर कोरोना बीमारी को लेकर दुर्व्यवहार करने के संबंध में."

शिकायत में भगवानपुर गांव के नन्हें आलम लिखते हैं, "मेरे और मेरे मुस्लिम समाज के लोगों के घर पर शाम छह बजे के बाद ईंट पत्थर फेंका जाता है. गाली-गलौज की जाती है."

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Image caption राजीव चौधरी

उसी गांव के रहने वाले राजीव चौधरी उर्फ़ मुन्ना चौधरी पर उन्होंने आरोप लगाया है कि, "वे पानी बांटने वाले को पानी बांटने से, सब्ज़ी वाले को सब्ज़ी बेचने से मना करते हैं और बोलते हैं कि मियां लोगों को कुछ मत दो."

अफ़वाह से शुरू हुआ विवाद

नन्हें आलम के भाई आफ़ाक़ आलम बीबीसी से फ़ोन पर बताते हैं, "यह विवाद तब शुरू हुआ था जब मैं अपने ससुराल से लौटा. मैं एक झोला झाप डॉक्टर हूं. मेरे दादा, पिता सभी यही काम करते थे. इस इलाक़े के लोगों का हमारे परिवार पर भरोसा था. लेकिन मेरे बारे में राजीव चौधरी ने गांव में अफ़वाह फैला दी कि मुझे, मेरी पत्नी और मेरे बेटों को कोरोना हुआ है. एकाध दिनों में ही यह अफ़वाह आसपास के गांवों में फैल गई. लोग ताने कसने लगे. बाहर काम से निकलना मुश्किल हो गया और केवल मेरा ही नहीं बल्कि इलाक़े में जितने मुसलमान हैं, सभी को लोग शक की नज़र से देखने लगे."

आफ़ाक़ आगे कहते हैं, "उन्हीं लोगों ने मेडिकल टीम और पुलिस को बुलाकर मेरे परिवार की जाँच भी कराई. लेकिन पूरे परिवार की रिपोर्ट निगेटिव आयी. उसके बाद से ज्यादतियां और बढ़ गईं हैं. बाहर फल-सब्जियां बेचने वालों के साथ मारपीट की जा रही है. पहली बार चार मार्च को वे लोग हमारे घर के पास आकर हंगामा किए. मेरे भाई ने पुलिस को शिकायत की. लेकिन पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. शुरू में तो एफ़आईआर भी दर्ज नहीं की जा रही थी."

हालांकि, इस मामले में अब एफ़आईआर दर्ज हो चुकी है. बेगूसराय के एसपी अवकाश कुमार ने इसकी जानकारी देते हुए कहा, "हमने जाँच के बाद एफ़आईआर दर्ज की. आरोपी को पकड़ने के लिए उसके घर पर छापेमारी भी की गई है, लेकिन वह फ़रार है. परिजनों से पूछताछ के आधार पर हम लोगों ने और भी कई जगहों पर छापेमारी की है. जल्द ही आरोपी को पकड़ लिया जाएगा."

मुसलमान जानने के बाद भगाने लगते हैं लोग

बेगूसराय के भगवानपुर और आसपास के इलाक़ों में पानी सप्लाई का काम करने वाले मो. कमाल बीबीसी से कहते हैं, "आजकल सप्लाई का काम बहुत जगह बंद हो गया है. हिन्दू मोहल्लों में लोग घुसने से भी मना कर देते हैं. हालत ऐसी हो गई है कि मज़दूरी के लिए निकलना मुश्किल है."

75 वर्षीया बुजुर्ग नफ़ीसा खातून कहती हैं, "मेरे बारे में अफ़वाह फैला दिया गया कि मैं मर गई और मेरी क़ब्र भी खोद दी गई है. इसी तरह दूसरे मुसलमानों के बारे में भी कहा जा रहा है. लोग चर्चा कर रहे हैं कि बहुत सारे क़ब्र खोद दिए गए हैं. हमें लोगों को बताना पड़ रहा है कि हम ज़िंदा हैं."

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Image caption नवीसा खातून

बेगूसराय में राशन की दुकानों, बैंकों और दूसरे सरकारी दफ्तरों में भी मुसलमानों के बहिष्कार की घटनाएं घट रही हैं. नवीसा ने ही बताया, "बैंक जाने पर हमें देखकर दूर से ही लोग कह रहे हैं, तुम मुसलमान हो. तुम्हीं लोग कोरोना लेकर आए हो. जाओ यहां से. और लोग भगा दे रहे हैं. मैं दो दिन बैंक से लौटकर आ गई. मैनेजर को शिकायत भी की तो वो कह रहे हैं कि आपका काम करा देंगे. लेकिन अभी तक पैसा नहीं निकला है."

हमारी बात उस इलाक़े में खेतों में काम करने वाली कुछ महिलाओं से भी हुई, वे कहती हैं, "फ़सल काटने के काम से हटा दिया गया. कोई काम नहीं दे रहा क्योंकि हम लोग मुसलमान हैं. यहां तक कि अगर खेत में छूटे अनाज के दाने भी चुनने जाते हैं तो लोग भगा देते हैं यह कहकर कि हमारे में कोरोना वायरस है."

पुलिस ने बताया दूसरा कारण

भगवानपुर के मामले में अभियुक्त के चाचा राम अह्लाद चौधरी कहते हैं, "इसे जान-बूझकर हिंदू-मुसलमान का रंग दिया जा रहा है. मेरे भतीजे का इसमें कोई लेना-देना नहीं है. जहां तक बात नन्हें आलम के साथ विवाद की है तो वह पंचायत की एक सरकारी योजना की राशि में घपले को लेकर है. नन्हें की पत्नी और मेरा भतीजा राजीव दोनों अपने-अपने वार्ड के सदस्य हैं. मेरे भतीजे का कहना है कि नन्हें आलम ने एक योजना का सारा पैसा अपने पास रख लिया."

पुलिस ने भी जो एफ़आईआर दर्ज की है उसमें इस बात का ज़िक्र है कि दोनों पक्षों के बीच सरकारी योजना की राशि के बंटवारे का विवाद है.

भगवानपुर के थाना प्रभारी दीपक कुमार ने बताया, "अफ़वाह वाली बात भी सच है. उस झोला झाप डॉक्टर को लेकर अफ़वाह उड़ी थी, लेकिन जब उसकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई तब से मामला शांत है. लोगों ने उस पर भरोसा कर लिया है और अब सामुदायिक तनाव वाली स्थिति बिल्कुल भी नहीं है. पुलिस भी मुस्तैद है. लगातार इलाक़े की पेट्रोलिंग की जा रही है."

दीपक कहते हैं, "हमारी जाँच में पता चला है कि दोनों पक्षों के बीच पंचायत की राजनीति का विवाद भी है. सरकारी योजना में पैसे के लेन-देन का मामला है."

लेकिन नन्हें आलम के भाई आफ़ाक़ अलाम इसे बाद का मामला बताते हैं. वे कहते हैं, "पैसे का मामला तो 17 अप्रैल को आया है जब राजीव चौधरी और उसके लोग मुंह पर कपड़ा बांधे हमारे घर के पास मोटरसाइकिल से आकर एक लाख रुपया रंगदारी मांगा, नहीं तो जान से मारने की धमकी दी. लेकिन, वह जानबूझ कर किया गया ताकि हम डर जाएं और पुलिस को अफ़वाह फैलाने की बात झूठी लगे. 17 अप्रैल से पहले भी उन लोगों ने कई बार हंगामा किया है."

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पूरे बेगूसराय में बढ़ी है हिन्दू-मुस्लिम खाई

हिन्दू-मुसलमान विवाद और तनाव की घटनाएं बेगूसराय के सिर्फ़ एक ही इलाक़े में नहीं हो रही हैं. बल्कि पूरे ज़िले में मुसलमानों के साथ भेदभाद और ज़्यादती की घटनाएं घट रही हैं.

बरौनी के रहने वाले महबूब आलम बताते हैं, "उनके संबंधियों में से कुछ लोग रेलवे की चादरें, पर्दे, कंबल आदि धोने का काम करते हैं. लेकिन उन्हें अब काम पर आने से मना कर दिया गया है जबकि हिन्दू समुदाय के जो लोग काम करते थे, अभी भी काम कर रहे हैं. इस लॉकडाउन में दूसरा कोई काम मिल नहीं रहा है. इसलिए अब हमारे लोगों के पास रोज़गार और पैसे का बहुत संकट हो गया है."

बेगूसराय पुलिस ने दो ऐसे मामले भी दर्ज किए हैं जो सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और अफ़वाहों पर आधारित पोस्ट कर उन्हें प्रचारित करने से जुड़े हैं. दोनों ही मामलों में अभियुक्तों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

पुलिस सद्भाव क़ायम करने की कोशिश कर रही है: एसपी

बेगूसराय के एसपी अवकाश कुमार ने मुसलमानों द्वारा पुलिस के ऊपर कार्रवाई नहीं करने और ज़्यादती करने के लगाए जा रहे आरोपों पर कहा, "ऐसा नहीं है कि हम कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, कई मामलों में गिरफ्तारियां हुई हैं. बाक़ियों की धरपकड़ की जा रही है. पुलिस सद्भाव क़ायम करने की हर कोशिश कर रही है चाहे वह सोशल मीडिया के ज़रिए हो या गश्त लगाकर हो. हम लोग सोशल मीडिया की कड़ी मॉनिटरिंग कर रहे हैं क्योंकि ज़्यादातर अफ़वाहें वहीं से आ रही हैं."

अवकाश कुमार यह भी कहते हैं, "ऐसे वक़्त में मुसलमान भाइयों को पुलिस पर भरोसा करना होगा. जहां भी उन पर ज्यादती हो रही है वो पुलिस को बताएं. अफ़वाहों के बारे में अवगत कराएं. मैं यक़ीन दिलाता हूं कि पुलिस सबके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेगी. लेकिन उससे पहले ज़रूरी है कि हम मिलकर इस महामारी से लड़ें. अगर ऐसे समय में हिन्दू-मुस्लिम की बात आती है तो यह क़त्तई भी सही नहीं है."

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नागरिकता क़ानून के समय से ही बढ़ी है खाई

बेगूसराय में मुसलमानों को लेकर जो चर्चा इन दिनों सबसे आम है वो ये कि वही इस बीमारी को ज़िले में लेकर आए हैं. कथित रूप से बेगूसराय के अब तक के सारे पॉज़िटिव मरीज़ मुसलमान हैं.

लेकिन बेगूसराय में रहने वाले कवि सुधांशु फिरदौस बताते हैं, "मुझे यह तनाव आज से नहीं बल्कि नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध के समय से ही दिख रहा है. उसी समय से कई इलाक़ों में झड़पें हो रही हैं. हालांकि वह एक राजनीतिक विरोध प्रदर्शन था. लेकिन विरोध प्रदर्शन में अधिकांश आबादी मुसलमानों की ही थी. तभी से एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ लोगों में आक्रोश है. जो कोरोना के आते-आते इस पूर्वाग्रह में बदल गया कि मुसलमान ही कोरोना भी लेकर आए हैं."

सुधांशु यह भी कहते हैं, "हिन्दू-मुसलमानों के बीच पनपी यह खाई केवल बेगूसराय में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में नज़र आ रही है. मधुबनी, दरभंगा, औरंगाबाद समेत कई ज़िलों से हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच लडाई झगड़े की ख़बरें आयी हैं. कोरोना से भले बिहार लड़ लें लेकिन जिस तरह का माहौल इस वक़्त चल रहा है और इसको रोका नहीं गया तो आने वाले दिनों में धार्मिक उन्माद बहुत बढ़ सकता है."

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